बॉलीवुड 2018: दीपिका की पद्मावत या आलिया की राज़ी ?
इस साल के शुरु में आई अनुराग कशयप की फ़िल्म 'मुक्काबाज़' में हीरो का यही रिएक्शन होता है जब वो चोरी-चोरी हीरोइन को देखता है. लेकिन फ़िल्म की हीरोइन खुल्लम-खुल्ला, भरे बाज़ार में हीरो को निहारती है, वो भी ऐसे की बरेली का हमारा बॉक्सर हीरो भी शर्मा जाए.
फ़िल्म की हीरोइन ज़ोया न बोल सकती है, न सुन सकती है. लेकिन प्रेम कहानी में पहल वही करती है.
मुक्काबाज़ के एक सीन में ज़ोया एक विकलांग व्यक्ति से शादी करने से इनकर कर देती है -इसलिए नहीं कि लड़का विकलांग है बल्कि इसलिए कि वो नहीं चाहती कि कोई तरस खाके उससे शादी करे और इसलिए भी कि वो किसी और से प्यार करती है.
जिस तरह से इस मज़बूत महिला किरदार को मुक्काबाज़ में दिखाया गया उसने उम्मीद जगाई कि औरत के किरदार को फ़िल्मों में डेकोरेशन पीस की तरह नहीं रखा जाएगा. तो कैसा रहा साल 2018 इस लिहाज़ से ?
2018 में राज़ी जैसी फ़िल्म का आना जिसमें आलिया भट्ट मुख्य किरदार में थी और जिसे एक महिला निर्देशक मेघना गुलज़ार ने बनाया था और जिसने 100 करोड़ बनाए...एक सुखद एहसस था.
बिना किसी पुरुष सुपरहीरो वाली फ़िल्म को कॉमर्शियल कामयाबी चंद हिंदी फ़िल्मों को नसीब होती है.
राज़ी का एक-एक फ़्रेम आलिया भट्ट की मौजूदगी से भरा हुआ था.
औरत के मन को टटोलती ऐसी ही फ़िल्म थी स्त्री. कहने को तो एक भूतनी पर बनी ये कॉमेडी फ़िल्म थी लेकिन समाज में औरत का क्या दर्जा है, हँसी ठिठोली में ये फ़िल्म इस पर काफ़ी कुछ कह गई.
मसलन फ़िल्म में पंकज त्रिपाठी का डायलॉग है, "ये स्त्री नए भारत की चुड़ैल है. पुरुषों से उल्ट ये स्त्री ज़बरदस्ती नहीं करती. वो पुकारती है और तभी कदम बढ़ाती है जब पुरुष पलट के देखता है क्योंकि हाँ मतलब हाँ. "
ज़ाहिर है यहाँ इशारा कंसेंट की ओर था.
फ़िल्म स्त्री में मुख्य किरदार भले ही पुरुष थे लेकिन ये एक मिसाल थी कि पुरुष किरदारों वाली फ़िल्में भी जेंडर-सेंसिटिव हो सकती हैं और पैसा कमा सकती है. इस फ़िल्म ने भी 100 करोड़ कमाए.
फ़िल्म मुक्काबाज़ में भी हीरो के इर्द गिर्द ही कहानी घूमती है लेकिन मूक-बधिर होने के कारण हीरोइन ख़ुद की बेचारी नहीं मानती. हीरो से शादी के बाद वो हक़ से माँग करती है कि उसका पति साइन लैंग्वेज सीखे ताकि वो उसकी बात समझ सके और पति सीखता भी है.
2018 में परी जैसी कुछ फ़िल्में भी थीं जो फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर नहीं चली लेकिन एक औरत के नज़रिए से बनी फ़िल्म देखना दिलचस्प रहा. इसमें ख़ास बात थी कि अनुष्का शर्मा ने एक्टिंग भी की और इसे प्रोड्यूस भी किया था.
इसी बीच 2018 में कुछ ऐसी फ़िल्मे भी आईं जो बॉक्स ऑफ़िस पर ज़बरदस्त हिट रहीं लेकिन इनमें जिस तरह औरतों को दिखाया गया उसे लेकर ज़बरदस्त विवाद भी हुआ.
फ़िल्म पदमावत में दीपिका पादुकोण का किरदार जब जौहर करता है तो आलाचकों के मुताबिक ये सती प्रथा का महिमामंडन करता हुआ लगा.
जौहर के उस दृशय को जिस तरह फ़िल्माया गया- लाल साड़ियो में गहनों से सजी औरतें और आग की वो लपटें....ये मन में द्वंध पैदा करता है.
फ़िल्म की हीरोइन ज़ोया न बोल सकती है, न सुन सकती है. लेकिन प्रेम कहानी में पहल वही करती है.
मुक्काबाज़ के एक सीन में ज़ोया एक विकलांग व्यक्ति से शादी करने से इनकर कर देती है -इसलिए नहीं कि लड़का विकलांग है बल्कि इसलिए कि वो नहीं चाहती कि कोई तरस खाके उससे शादी करे और इसलिए भी कि वो किसी और से प्यार करती है.
जिस तरह से इस मज़बूत महिला किरदार को मुक्काबाज़ में दिखाया गया उसने उम्मीद जगाई कि औरत के किरदार को फ़िल्मों में डेकोरेशन पीस की तरह नहीं रखा जाएगा. तो कैसा रहा साल 2018 इस लिहाज़ से ?
2018 में राज़ी जैसी फ़िल्म का आना जिसमें आलिया भट्ट मुख्य किरदार में थी और जिसे एक महिला निर्देशक मेघना गुलज़ार ने बनाया था और जिसने 100 करोड़ बनाए...एक सुखद एहसस था.
बिना किसी पुरुष सुपरहीरो वाली फ़िल्म को कॉमर्शियल कामयाबी चंद हिंदी फ़िल्मों को नसीब होती है.
राज़ी का एक-एक फ़्रेम आलिया भट्ट की मौजूदगी से भरा हुआ था.
औरत के मन को टटोलती ऐसी ही फ़िल्म थी स्त्री. कहने को तो एक भूतनी पर बनी ये कॉमेडी फ़िल्म थी लेकिन समाज में औरत का क्या दर्जा है, हँसी ठिठोली में ये फ़िल्म इस पर काफ़ी कुछ कह गई.
मसलन फ़िल्म में पंकज त्रिपाठी का डायलॉग है, "ये स्त्री नए भारत की चुड़ैल है. पुरुषों से उल्ट ये स्त्री ज़बरदस्ती नहीं करती. वो पुकारती है और तभी कदम बढ़ाती है जब पुरुष पलट के देखता है क्योंकि हाँ मतलब हाँ. "
ज़ाहिर है यहाँ इशारा कंसेंट की ओर था.
फ़िल्म स्त्री में मुख्य किरदार भले ही पुरुष थे लेकिन ये एक मिसाल थी कि पुरुष किरदारों वाली फ़िल्में भी जेंडर-सेंसिटिव हो सकती हैं और पैसा कमा सकती है. इस फ़िल्म ने भी 100 करोड़ कमाए.
फ़िल्म मुक्काबाज़ में भी हीरो के इर्द गिर्द ही कहानी घूमती है लेकिन मूक-बधिर होने के कारण हीरोइन ख़ुद की बेचारी नहीं मानती. हीरो से शादी के बाद वो हक़ से माँग करती है कि उसका पति साइन लैंग्वेज सीखे ताकि वो उसकी बात समझ सके और पति सीखता भी है.
2018 में परी जैसी कुछ फ़िल्में भी थीं जो फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर नहीं चली लेकिन एक औरत के नज़रिए से बनी फ़िल्म देखना दिलचस्प रहा. इसमें ख़ास बात थी कि अनुष्का शर्मा ने एक्टिंग भी की और इसे प्रोड्यूस भी किया था.
इसी बीच 2018 में कुछ ऐसी फ़िल्मे भी आईं जो बॉक्स ऑफ़िस पर ज़बरदस्त हिट रहीं लेकिन इनमें जिस तरह औरतों को दिखाया गया उसे लेकर ज़बरदस्त विवाद भी हुआ.
फ़िल्म पदमावत में दीपिका पादुकोण का किरदार जब जौहर करता है तो आलाचकों के मुताबिक ये सती प्रथा का महिमामंडन करता हुआ लगा.
जौहर के उस दृशय को जिस तरह फ़िल्माया गया- लाल साड़ियो में गहनों से सजी औरतें और आग की वो लपटें....ये मन में द्वंध पैदा करता है.
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